Thursday, 7 July 2016

दहेजकी ये कविता कई घरो की हकीकत है

*“ मैंने दहेज़ नहीं माँगा ”*

 

साहब मैं थाने नहीं आउंगा,

 

अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा,

 

माना पत्नी से थोडा मन मुटाव था,

 

सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था,

 

*पर यकीन मानिए साहब ,*

*“ मैंने दहेज़ नहीं माँगा ”*

 

 

मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है,

 

महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है।

 

चाहत मेरी भी बस ये थी कि माँ बाप का सम्मान हो,

 

उन्हें भी समझे माता पिता, न कभी उनका अपमान हो।

 

पर अब क्या फायदा, जब टूट ही गया हर रिश्ते का धागा,

 

*यकीन मानिए साहब,*

*“ मैंने दहेज़ नहीं माँगा ”*

 

 

परिवार के साथ रहना इसे पसंन्द नहीं,

 

कहती यहाँ कोई रस, कोई आनन्द नही,

 

मुझे ले चलो इस घर से दूर, किसी किराए के आशियाने में,

 

कुछ नहीं रखा माँ बाप पर प्यार बरसाने में,

 

हाँ छोड़ दो, छोड़ दो इस माँ बाप के प्यार को,

 

नहीं मांने तो याद रखोगे मेरी मार को,

 

बस बूढ़े माता पिता का ही मोह, न छोड़ पाया मैं अभागा,

 

*यकींन मानिए साहब,*

*“ मैंने दहेज़ नहीं माँगा ”*

 

 

फिर शुरू हुआ वाद विवाद माँ बाप से अलग होने का,

 

शायद समय आ गया था, चैन और सुकून खोने का,

 

एक दिन साफ़ मैंने पत्नी को मना कर दिया,

 

न रहुगा माँ बाप के बिना ये उसके दिमाग में भर दिया।

 

बस मुझसे लड़ कर मोहतरमा मायके जा पहुंची,

 

2 दिन बाद ही पत्नी के घर से मुझे धमकी आ पहुंची,

 

माँ बाप से हो जा अलग, नहीं सबक सीखा देगे,

 

क्या होता है दहेज़ कानून तुझे इसका असर दिखा देगें।

 

परिणाम जानते हुए भी हर धमकी को गले में टांगा,

 

*यकींन माँनिये साहब ,*

 

*“ मैंने दहेज़ नहीं माँगा ”*

 

जो कहा था बीवी ने, आखिरकार वो कर दिखाया,

 

झगड़ा किसी और बात पर था, पर उसने दहेज़ का नाटक रचाया।

 

बस पुलिस थाने से एक दिन मुझे फ़ोन आया,

 

क्यों बे, पत्नी से दहेज़ मांगता है, ये कह के मुझे धमकाया।

 

माता पिता भाई बहिन जीजा सभी के रिपोर्ट में नाम थे,

 

घर में सब हैरान, सब परेशान थे,

 

अब अकेले बैठ कर सोचता हूँ, वो क्यों ज़िन्दगी में आई थी,

 

मैंने भी तो उसके प्रति हर ज़िम्मेदारी निभाई थी।

 

आखिरकार तमका मिला हमे दहेज़ लोभी होने का,

 

कोई फायदा न हुआ मीठे मीठे सपने सजोने का।

 

बुलाने पर थाने आया हूँ, छूप कर कहीं नहीं भागा,

 

*लेकिन  यकींन  मानिए  साहब ,*

*“ मैंने दहेज़ नहीं माँगा ”*

 

😪 *झूठे दहेज के मुकदमों के कारण ,*

*पुरुष के दर्द से ओतप्रोत एक मार्मिक कृति…* 🙏🏻

 

*दहेज  की  ये  कविता  कई  घरो  की  हकीकत  है*

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